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January 31, 2024 05:14
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seher lyrics
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एक बखत की बात बताएं, एक बखत की | |
जब शहर हमारो सो गयो थो, रात गजब की | |
चहूं ओर सब ओर दिशा से लाली छाई रे | |
जुगनी नाचे चुनर ओढ़े खून नहाई रे | |
सब ओरो गुल्लाल पुत गयो बिपदा छाई रे | |
जिस रात गगन से खून की बारिश आई रे | |
जिस रात सहर में खून की बारिश आई रे | |
सराबोर हो गयो सहर और सराबोर हो गयी धरा | |
सराबोर हो गयो रे जत्था इंसानों का पड़ा-पड़ा | |
सभी जगत ये पूछ्या था जब इतना सब कुछ हो रयो थो | |
तो सहर हमारो काईं-बाईसा आंख मूंद कै सो रयो थो | |
तो सहर ये बोल्यो नींद गजब की ऐसी आई रे | |
जिस रात गगन… | |
सन्नाटा वीराना खामोशी अनजानी | |
जिंदगी लेती है करवटें तूफानी | |
घिरते हैं साए घनेरे से | |
रूखे बालों को बिखेरे से | |
बढ़ते हैं अंधेरे पिशाचों से | |
कापें है जी उनके नाचों से | |
कहीं पे वो जूतों की खटखट है | |
कहीं पे अलावों की चटपट है | |
कहीं पे है झिंगुर की आवाजें | |
कहीं पे वो नलके की टप-टप है | |
कहीं पे वो खाली सी खिड़की है | |
कहीं वो अंधेरी सी चिमनी है | |
कहीं हिलते पेड़ों का जत्था है | |
कहीं कुछ मुंडेरों पे रखा है | |
सुनसान गली के नुक्कड़ पर जो कोई कुत्ता चीख-चीख कर रोता है | |
जब लैंप पोस्ट की गंदली पीली घुप्प रौशनी में कुछ-कुछ सा होता है | |
जब कोई साया खुद को थोड़ा बचा-बचाकर गुम सायों में खोता है | |
जब पुल के खम्बों को गाड़ी का गरम उजाला धीमे-धीमे धोता है | |
तब शहर हमारा सोता है.. | |
जब शहर हमारा सोता है तो | |
मालूम तुमको हां क्या-क्या क्या होता है | |
इधर जागती है लाशें | |
जिंदा हो मुर्दा उधर ज़िन्दगी खोता है | |
इधर चीखती है एक हव्वा | |
खैराली उस अस्पताल में बिफरी सी | |
हाथ में उसके अगले ही पल | |
गरम मांस का नरम लोथड़ा होता है | |
इधर उगी है तकरारें जिस्मों के झटपट लेन-देन में ऊंची सी | |
उधर घाव से रिसते खूं को दूर गुज़रती आंखें देखें रूखी सी | |
लेकिन उसको लेके रंग-बिरंगे महलों में गुंजाईश होती है | |
नशे में डूबे सेहन से खूंखार चुटकुलों की पैदाइश होती है | |
अधनंगे जिस्मों की देखो लिपी-पुती सी लगी नुमाइश होती है | |
लार टपकते चेहरों को कुछ शैतानी करने की ख्वाहिश होती है | |
वो पूछे हैं हैरां होकर, ऐसा सब कुछ होता है कब | |
वो बतलाओ तो उनको ऐसा तब-तब, तब-तब होता है | |
जब शहर हमारा… |
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