Skip to content

Instantly share code, notes, and snippets.

  • Save gopalindians/59e78f93c0e2315ca581c5b7fa057395 to your computer and use it in GitHub Desktop.
Save gopalindians/59e78f93c0e2315ca581c5b7fa057395 to your computer and use it in GitHub Desktop.
004 । वाल्मीकि जी का संसार, शास्त्र, वासना, मुक्ति और रामजी की के जीवन की कथा का आरंभ करना.md

3 जनवरी

ब्रह्मस्य जागतस्यास्य जातस्याकाशवर्णवत्। अपुनः स्मरणं मन्ये साधो विस्मरणं वरम् (2)

वाल्मीकि ने आगे कहा: संसार का स्वरूप भ्रम में डालनेवाला है। यहाँ तक कि नीला दिखलाई पड़नेवाला आकाश भी दृष्टि-भ्रम ही है। मेरा विचार है कि उससे (संसार से) मन न लगाया जाए बल्कि उसकी उपेक्षा की जाए। जब तक यह धारणा जाग्रत नहीं होती कि संसार का स्वरूप असत् है तब तक न तो दुखों से निवृत्ति मिल सकती है और न अपनी प्रकृति की ही अनुभूति हो सकती है। यह धारणा तभी जाग्रत होती है जब धर्मग्रंथों का अध्ययन मनोयोग से किया जाए। तभी व्यक्ति की दृढ़ धारणा बनती है कि यह दृश्य संसार भ्रम है तथा सत् और असत् का मिला-जुला रूप है। यदि कोई मनोयोग से धर्मग्रंथों का अध्ययन नहीं करता तो लाखों वर्षों में भी उसमें सच्चा ज्ञान उत्पन्न नहीं होता।

मोक्ष वस्तुतः संपूर्ण वासनाओं या मानसिक प्रवृत्तियों का त्याग है। वासनाएँ दो प्रकार की होती हैं–शुद्ध और अशुद्ध। अशुद्ध वासनाएँ जन्म का कारण होती हैं और शुद्ध वासनाएँ बार-बार होनेवाले जन्म से मुक्ति दिलाती हैं। अशुद्ध वासनाओं की प्रकृति अहं-प्रधान होती है। ये ऐसे बीज हैं जिनसे पुनर्जन्म का वृक्ष उत्पन्न होता है। जब इन बीजों को त्याग दिया जाता है तब शरीर को धारण करनेवाली मनःस्थिति की प्रकृति शुद्ध रहती है। ऐसी मन:स्थिति उन लोगों की भी होती है जिन्होंने अपने जीवनकाल में मुक्ति प्राप्त की होती है। यह पुनर्जन्म की ओर नहीं ले जाती। यह अपने पूर्वार्जित (पूर्व+अर्जित) आवेग से स्थित रहती है न कि वर्तमानकालिक प्रेरणा से।

राम ने किस प्रकार मुक्त ऋषि के रूप में अपना जीवन व्यतीत किया इसका अब मैं वर्णन करूँगा। इसे सुनकर सदा के लिए जन्म और मृत्यु-संबंधी सभी प्रकार के भ्रमों से तुम मुक्त हो जाओगे। अपने गुरु के आश्रम से वापस आने पर राम अपने पिता के साथ राजमहल में रहने लगे और अनेक प्रकार से राजकाज में उनका सहयोग करने लगे। एक दिन संपूर्ण देश का भ्रमण करने और पवित्र तीर्थों के दर्शन करने की अपनी इच्छा उन्होंने महाराज दशरथ को बताई। महाराज ने तीर्थयात्रा का शुभ मुहूर्त निकलवाया और निश्चित दिन पिता तथा अन्य पूज्य लोगों से आशीर्वाद ग्रहण करके राम तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

राम अपने भाइयों के साथ हिमालय से दक्षिण तक संपूर्ण देश का भ्रमण करने के बाद राजधानी वापस पहुँचे तो प्रजा को अत्यधिक प्रसन्नता हुई।

Sign up for free to join this conversation on GitHub. Already have an account? Sign in to comment